दुविधा
अजीब मनोस्थिति है
कुछ कहना चाहता हूँ ।
हाथों में लेखनी है
कुछ लिखना चाहता हूँ ।
शब्द नहीं हैं, फिर भी
कुछ बयाँ करना चाहता हूँ ।
विचारों के भँवर से
बाहर निकलना चाहता हूँ ।
या फिर इसमें डूबकर
अन्दर समाना चाहता हूँ ।
अजीब मनोस्थिति है
कुछ कहना चाहता हूँ ।
थक गया मैं लड़ते - लड़ते, अब बस
हार मानना चाहता हूँ ।
मगर क्या यूँही बैठकर
सपने बुनना चाहता हूँ ।
पत्थरों के रास्ते अब
नहीं गुजरना चाहता हूँ ।
या घिस घिस कर अपनी
लीक छोड़ना चाहता हूँ ।
अजीब मनोस्थिति है
कुछ कहना चाहता हूँ ।
ख़म ठोंक ठेलकर, दम से अपने
पर्वत उखाड़ना चाहता हूँ ।
या उसकी तराई में बैठकर
दिग्भ्रमित होना चाहता हूँ ।
लक्ष्य की तलाश में, धूमकेतु बन
भ्रमण करना चाहता हूँ ।
या किसी कंचन रमणी संग
विस्मृत होना चाहता हूँ ।
अजीब मनोस्थिति है
कुछ कहना चाहता हूँ ।
2 comments:
Interesting hai. Kuch positive likho ;)
I go with Vivek.
Good one though, straight from heart
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